Climate Change: हिमालय की ग्लेशियर झीलों से उत्पन्न होने वाली बाढ़, जिसे ‘ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (जीएलओएफ) कहा जाता है, एक गंभीर खतरा बनी हुई है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुतबिक नागालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ता, डॉ. मानसी देबनाथ के नेतृत्व में, पूर्वी हिमालय में ऐसी झीलों की पहचान और उनसे होने वाले खतरों से बचाव के उपाय खोज रहे हैं।
नागालैंड विश्वविद्यालय ने सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की ऊंचाई पर स्थित ग्लेशियर झीलों पर अध्ययन शुरू किया है। इस शोध में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, सिक्किम विश्वविद्यालय और जी.बी. पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट के विशेषज्ञ भी शामिल हैं। शोध का उद्देश्य खतरनाक झीलों की पहचान, उनके जोखिमों का आकलन और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझना है। इसके लिए अरुणाचल की दो और सिक्किम की एक झील का चयन किया गया है।
अक्टूबर 2023 में सिक्किम में एक ग्लेशियर झील के फटने से तीस्ता नदी में भयंकर बाढ़ आई थी, जिसने चुंगथांग बांध को क्षतिग्रस्त कर दिया और 100 से अधिक लोगों की जान ले ली। हजारों लोग बेघर हो गए। यह आपदा जीएलओएफ का एक उदाहरण थी, जिसमें बादल फटने से झील में अचानक पानी बढ़ गया और किनारे टूट गए।
शोधकर्ता बाथिमेट्रिक सर्वेक्षण और बाढ़ मॉडलिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। यह सर्वेक्षण झीलों की गहराई और नीचे की संरचना की जानकारी देता है। डॉ. देबनाथ के अनुसार, “इस शोध के नतीजे नीति निर्माताओं और योजनाकारों के साथ साझा किए जाएंगे। इससे नदियों और पर्वतीय नालों के किनारों को मजबूत करने में मदद मिलेगी, जिससे बाढ़ की तबाही को कम किया जा सकेगा।”
इस परियोजना में सैटेलाइट तस्वीरों और मौके पर सर्वेक्षण के जरिए झीलों की लंबाई, चौड़ाई और गहराई मापी जाएगी। साथ ही, पूर्वी हिमालय के ग्लेशियरों में बर्फ के पिघलने की दर का पश्चिमी हिमालय और एशिया के अन्य क्षेत्रों से तुलनात्मक विश्लेषण किया जाएगा। ड्रोन मैपिंग के जरिए खतरनाक झीलों के किनारों को मजबूत करने की योजना है।
Climate Change: जलवायु परिवर्तन और जीएलओएफ का बढ़ता खतरा
नागालैंड विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर प्रो. जगदीश के. पटनायक ने इस शोध को पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “यह शोध पूर्वी हिमालय की झीलों की सटीक सूची और उनकी स्थिरता का मूल्यांकन करने में मदद करेगा।” परियोजना को केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय का वित्तीय समर्थन प्राप्त है।
जलवायु परिवर्तन के कारण पूर्वी हिमालय, विशेष रूप से अरुणाचल और सिक्किम, जीएलओएफ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। सिक्किम के पर्यावरण विशेषज्ञ प्रो. बी.एन. प्रधान ने कहा, “ऐसे अध्ययन महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनके नतीजों को जमीनी स्तर पर लागू करना और भी जरूरी है। इसके लिए नीति निर्माताओं को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।”
नागालैंड विश्वविद्यालय ने ग्लेशियर एंड माउंटेन रिसर्च लैब की स्थापना की है, जो इस दिशा में और अधिक शोध को बढ़ावा देगी। यह प्रयास न केवल आपदा प्रबंधन में मदद करेगा, बल्कि पीने के पानी के संसाधनों के संरक्षण में भी योगदान देगा।
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