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Shoolini Litfest 2025: लोक संगीत हमारे डीएनए का हिस्सा इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी:- सुनैनी शर्मा

Shoolini Litfest 2025: लोक संगीत हमारे डीएनए का हिस्सा इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी:- सुनैनी शर्मा

Shoolini Litfest 2025: शूलिनी लिटरेचर फेस्टिवल के बहुप्रतीक्षित पांचवें संस्करण की शुरुआत बड़े उत्साह के साथ हुई, जिसमें साहित्य, सिनेमा, संगीत और मीडिया की जानी-मानी हस्तियां एक साथ आईं। इस दौरान लोकप्रिय गायिका स्व. सुरिंदर कौर की नातिन और प्रसिद्ध लोकगायिका सुनैनी शर्मा ने शूलिनी लिटफेस्ट के मंच से लोकसंगीत के संरक्षण और उसकी महत्ता पर जोर दिया। ‘Rhymes with Reason’ विषय पर बॉलीवुड गीतकार राज शेखर के साथ चर्चा की।

उन्होंने बताया कि कैसे कुछ गैर-जिम्मेदार लेखक लोकगीतों के बोलों को तोड़-मरोड़कर उनका अर्थ बदल देते हैं, जिससे लोकसंगीत की असल आत्मा प्रभावित होती है। सुनैना शर्मा ने आधुनिक संगीत के दौर में पारंपरिक लोक कलाओं के संकट पर चिंता भी जताई।

मीडिया से बातचीत के दौरान सुनैनी शर्मा ने कहा कि जब कोई लोक संगीत के बोलों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है, तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरे दिल पर चोट की गई हो। शर्मा ने लोकसंगीत को एक ऐसी लाइब्रेरी बताया जिससे प्रेरित होकर संगीत निर्देशक नई धुनें और रचनाएँ तैयार करते हैं।

उन्होंने कहा कि लोकगीत को पीढ़ी दर पीढ़ी संजोकर रखना एक तपस्या है। उन्होंने बताया कि उनकी माँ 13-14 घंटे तक रियाज़ किया करती थी। हम स्कूल जाके लौट के भी आ जाते थे और वो बैठी वही रियाज़ कर रही होती थी बीच में घर का काम भी कर रही होती थी ।

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एक सवाल के जबाब में उन्होंने कहा कि उनकी नानी, स्व. सुरिंदर कौर, उस दौर में लोकगायिका थीं जब महिलाओं के लिए मंच पर आना भी चुनौतीपूर्ण था। उनकी माता, डॉली गुलेरिया, ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया, और अब सुनैनी खुद इस विरासत को संभाल रही हैं।

डीजे संस्कृति से दबते पारंपरिक गीत

सुनैनी ने शादियों में पारंपरिक बन्ना और सुहाग गीतों के स्थान पर डीजे की बढ़ती धुनों पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “पहले शादियों में लोकगीतों की गूंज होती थी, लेकिन आज कानफोड़ू डीजे संगीत ने इन मधुर परंपराओं को पीछे छोड़ दिया है।” इसके नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलू हैं, लेकिन लोक संगीत हमेशा से एक लाइब्रेरी की तरह रहा है,  जहां से संगीत निर्देशक और संगीतकार प्रेरणा लेकर कुछ नया प्रस्तुत करते हैं।

मां ने ठुकराए बड़े ऑफर, चुना लोकसंगीत

सुनैनी ने एक रोचक किस्सा साझा करते हुए बताया कि उनकी मां को बड़ी संगीत कंपनियों ने रैप और कमर्शियल गाने गाने के लिए मोटी रकम की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उनकी मां का कहना था, “मैं वही गाऊंगी जो मेरी आत्मा गाना चाहती है।”

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लोकगाथाओं का संरक्षण ज़रूरी

सुनैनी ने बताया कि लोग हीर-रांझा की प्रेम कहानी को जानते हैं, लेकिन सस्सी-पुन्नू, उमर-मारवी जैसी सैकड़ों लोकगाथाएँ विलुप्ति की कगार पर हैं। इन लोककथाओं को बचाने के लिए वह अपनी टीम के साथ मिलकर काम कर रही हैं।

पुराने ज़माने के लोकसंगीत का आकर्षण

उन्होंने अपनी नानी और आशा सिंह मस्ताना की जोड़ी को याद करते हुए कहा कि “आज के बड़े संगीत इवेंट्स से कहीं ज़्यादा लोग उस दौर में लोकगायकों को सुनने आते थे। परिवहन सुविधाएँ न होने के बाबजूद भी मेरी नानी के कार्यक्रमों में आस-पास के 8-10 गाँवों से बड़ी संख्यां में हजारों लोग इकट्ठा हो जाते थे।”

सुनैनी ने लोकसंगीत के प्रति बदलते रवैये को लेकर चिंता व्यक्त की, लेकिन उन्हें यह देखकर खुशी होती है कि युवा पीढ़ी अब सूफी नाइट्स और शायरी महफिलों के रूप में अपनी जड़ों की ओर लौट रही है। उन्होंने कहा”आज छोटे-छोटे समूह लोकसंगीत और साहित्यिक चर्चाओं को बढ़ावा दे रहे हैं, यह बदलाव उम्मीद जगाने वाला है,” ।

फैन फॉलोइंग कभी खत्म नहीं होगी”

लोकसंगीत के भविष्य को लेकर उनका कहना था, “लोकसंगीत हमारे डीएनए का हिस्सा है, इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। अगर हम इससे दूर हुए, तो यह हमारी सबसे बड़ी कमी होगी।” हालांकि लोक संगीत की फैन फॉलोइंग कभी खत्म नहीं होगी। 

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“आर्टिस्ट अकेले नहीं बनता”

अपनी नानी के संघर्षों को याद करते हुए सुनैनी ने कहा कि एक कलाकार अकेले सफल नहीं बनता, उसके पीछे पूरे परिवार और समाज का सहयोग होता है। “एक कलाकार को संवारने में उसके परिवार, साथी, और समाज का योगदान होता है।”

अपनी नानी और मस्ताना जी की जोड़ी की लोकप्रियता पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “उनकी गायकी में एक अलग ही जादू था, जिसे आज भी लोग याद करते हैं। उन्होंने अंत में एक लोकप्रिय लोकगीत की कुछ पंक्तियाँ गाकर समां बांध दिया-

“जमाने रो के आ मैं नू,
रई मैं फिर भी मिलती सजन तस्वीर जद देखी मेरे अनमोल तू…”

“मदानिया “हाय मेरे डाडा रब्बा!
किना जमिया, किना ने ले जानिया है…”

 

 

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