Vrindavan Banke Bihari Temple Controversy: वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने मंदिर के रोजमर्रा के कामकाज को संभालने के लिए एक विशेष कमेटी बनाई है, जिसकी कमान इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस अशोक कुमार को सौंपी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने लिखित आदेश में साफ किया है कि जब तक हाईकोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश पर अपना फैसला नहीं सुना देता, तब तक यह कमेटी मंदिर की पूरी जिम्मेदारी संभालेगी।
सरकार के अध्यादेश पर लगी रोक
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को झटका देते हुए उनके अध्यादेश के उस हिस्से पर रोक लगा दी है, जिसमें मंदिर प्रबंधन के लिए ट्रस्ट बनाने की बात थी। यानी, जब तक हाईकोर्ट इस मामले पर फैसला नहीं देता, तब तक सरकार कोई नया ट्रस्ट नहीं बना सकती।
दरअसल, उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम उठाया है। इससे पहले कोर्ट ने अध्यादेश की संवैधानिक वैधता की जांच के लिए मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट को भेज दिया था।
Vrindavan Banke Bihari Temple Controversy: कमेटी में कौन-कौन शामिल?
सुप्रीम कोर्ट ने जो कमेटी बनाई है, उसमें कई बड़े नाम शामिल हैं। कमेटी की अध्यक्षता जस्टिस अशोक कुमार करेंगे। उनके साथ यूपी के रिटायर्ड जिला एवं सत्र न्यायाधीश मुकेश मिश्रा, मथुरा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश, सिविल जज, जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, नगर आयुक्त, मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, एक मशहूर वास्तुकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का एक प्रतिनिधि और दोनों गोस्वामी समूहों से दो-दो सदस्य शामिल होंगे। यह कमेटी मंदिर के रोजमर्रा के काम से लेकर सभी जरूरी व्यवस्थाओं को देखेगी।
कमेटी के अध्यक्ष को 2 लाख, अन्य को 1 लाख
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी तय किया है कि कमेटी के अध्यक्ष जस्टिस अशोक कुमार को हर महीने 2 लाख रुपये का मानदेय मिलेगा, जो मंदिर के फंड से दिया जाएगा। साथ ही, उन्हें परिवहन और सचिवीय सहायता जैसी सभी जरूरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी। वहीं, रिटायर्ड जज मुकेश मिश्रा को 1 लाख रुपये प्रतिमाह मिलेंगे, जो भी मंदिर के कोष से वहन किया जाएगा।
क्यों लिया गया यह फैसला?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह अंतरिम व्यवस्था इसलिए की है, क्योंकि हाईकोर्ट को इस मामले में अंतिम फैसला देने में समय लग सकता है। तब तक मंदिर का प्रबंधन सुचारू रूप से चलाने के लिए यह कमेटी जिम्मेदारी संभालेगी। यह आदेश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद पारित किया।
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