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कश्मीर, पंजाब और अयोध्या: पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम और हरिंदर बावेजा ने खुशवंत सिंह लिटफेस्ट में खोले इतिहास के पन्ने…

कश्मीर, पंजाब और अयोध्या: पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम और हरिंदर बाजवा ने खुशवंत सिंह लिटफेस्ट में खोले इतिहास के पन्ने

Khushwant Singh Litfest 2025: ऐतिहासिक कसौली क्लब में 14वें खुशवंत सिंह लिटरेचर फेस्टिवल (KSLF 2025) के दूसरे दिन सत्र “Inking a Memoir Through Fire and Conflict” में वरिष्ठ पत्रकार हरिंदर बावेजा और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने कश्मीर, पंजाब, अयोध्या और लद्दाख के जटिल मुद्दों पर गहन चर्चा की। बावेजा ने अपनी पत्रकारिता यात्रा और भारत के संघर्षग्रस्त क्षेत्रों की सच्चाई को उजागर करते हुए गहरे विचार साझा किए और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने इन क्षेत्रों के संवेदनशील मुद्दों पर गहन चर्चा की। चर्चा में कश्मीर, पंजाब, अयोध्या और अवैध प्रवास जैसे विषयों पर गहराई से बात हुई, साथ ही भारत की नीतियों और सामाजिक चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला गया।

कश्मीर: संवाद की कमी और अनुच्छेद 370 का दंश
हरिंदर बावेजा ने कश्मीर को अपना “दूसरा घर” बताते हुए 1989 में रुबिया सईद के अपहरण की कवरेज से शुरू हुई अपनी पत्रकारिता यात्रा का जिक्र किया। उन्होंने 1989 से 2025 तक कश्मीर के बदलते हालात को करीब से देखा। बवेजा ने 2025 में पेलगाम के बुरान मीडो में हुए आतंकी हमले का उल्लेख किया, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। उन्होंने कहा, “कश्मीर में सबसे बड़ी कमी राजनीतिक संवाद की है। नई दिल्ली ने कश्मीर को अक्सर एक भौगोलिक क्षेत्र या रियल एस्टेट की तरह देखा, लेकिन वहां के लोगों की भावनाओं और आकांक्षाओं को नजरअंदाज किया।”

2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद की स्थिति को “दर्दनाक” बताते हुए बावेजा ने कहा, “संचार के सभी साधन बंद होने से लोग अपने परिवारों से कट गए। यह उनकी गरिमा छीनने जैसा था।” उन्होंने पेलगाम हमले के बाद कश्मीरियों की दरियादिली की मिसाल दी, जब स्थानीय लोगों ने पर्यटकों के लिए अपने घर, होटल और मस्जिदें खोल दीं।

हिमांशी नरवाल के उदाहरण के जरिए, जिन्होंने अपने पति की हत्या के बाद भी कश्मीरियों को बदनाम न करने की अपील की, बवेजा ने कहा कि कश्मीर की कहानी को मुख्यधारा के टीवी चैनलों की एकतरफा कवरेज से परे देखने की जरूरत है। बवेजा ने खुफिया जानकारी की कमी पर भी चिंता जताई। “अनुच्छेद 370 के बाद खुफिया सूत्र सूख गए हैं, न केवल कश्मीर घाटी में बल्कि राजौरी और पुंछ जैसे क्षेत्रों में भी। पेलगाम हमला इस बात का सबूत है कि शांति की कहानी पूरी तरह सच नहीं है।

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“पंजाब: ऑपरेशन ब्लू स्टार और बेरोजगारी का संकट
पंजाब पर बात करते हुए बावेजा ने 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार को एक ऐसी घटना बताया, जिसने गहरे जख्म छोड़े। “स्वर्ण मंदिर को किले में बदल दिया गया था, और सेना को अकाल तख्त को नष्ट करना पड़ा। यह गलत फैसला था, जिसकी कीमत इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।” उन्होंने 2020-21 के किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि किसानों को “खालिस्तानी” कहना सरकार की भूल थी। “खालिस्तान का नारा आर्थिक और सामाजिक असंतोष का परिणाम था, न कि अलगाववाद का।”

बावेजा ने पंजाब में बेरोजगारी को एक बड़ी समस्या बताया, जो युवाओं को अवैध प्रवास की ओर धकेल रही है। उन्होंने 1990 के दशक में अपने स्टिंग ऑपरेशन का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने अवैध प्रवास के नेटवर्क को उजागर किया था। “पंजाब, गुजरात और तेलंगाना से लोग जोखिम भरे रास्तों से विदेश जाने की कोशिश करते हैं। यूक्रेन-रूस सीमा पर भारतीय युवाओं की दयनीय स्थिति इसका उदाहरण है, जहां नौकरी के वादे पर गए युवा युद्ध में फंस गए।”

अयोध्या: बाबरी मस्जिद और मिथकों की सच्चाई
1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस को भारतीय इतिहास का एक दु:खद अध्याय बताते हुए बावेजा ने कहा कि बीजेपी नेताओं ने दावा किया था कि कश्मीर में 40 मंदिर तोड़े गए, जिसे बाबरी विध्वंस के औचित्य के लिए इस्तेमाल किया गया। लेकिन उनकी पड़ताल में पता चला कि 1986-87 की सांप्रदायिक हिंसा में कुछ मंदिरों को मामूली नुकसान हुआ था, जिन्हें स्थानीय मुस्लिम और पंडित समुदाय ने मिलकर ठीक किया था।

“बाबरी विध्वंस के बाद ही कुछ मंदिरों को नुकसान पहुंचा।” उन्होंने अनंतनाग के रघुनाथ मंदिर की घटना का जिक्र किया, जहां एक पंडित ने डर के कारण उनके नोट्स फाड़ दिए थे, ताकि उनकी पहचान उजागर न हो। “यह विश्वास की कमी का प्रतीक है, जो कश्मीर में आज भी मौजूद है।”

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कश्मीर, पंजाब और अयोध्या पर पी. चिदंबरम की दो टूक:
पूर्व केंद्रीय गृह और वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने वरिष्ठ पत्रकार हरिंदर बावेजा के साथ कश्मीर, पंजाब, अयोध्या और भारत की आर्थिक चुनौतियों पर गहन विचार साझा किए। इस सत्र में उन्होंने कश्मीर में विश्वास की कमी, पंजाब में आर्थिक संकट और बाबरी मस्जिद विध्वंस के दुखद परिणामों पर खुलकर बात की, साथ ही युवाओं और राष्ट्रवाद पर भी अपनी राय रखी।

चिदंबरम ने कश्मीर में विश्वास की कमी को सबसे बड़ी समस्या बताया। चर्चा के दौरान, पी. चिदंबरम ने अरुण जेटली का जिक्र कश्मीर के संदर्भ में किया। उन्होंने बताया कि जब वह गृह मंत्री थे, तब उन्होंने एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था, जिसमें अरुण जेटली भी शामिल थे। यह प्रतिनिधिमंडल कश्मीर गया था और वहां दो दिन तक, हर दिन 12 घंटे विभिन्न समूहों से मुलाकात और बातचीत की थी।

उन्होंने अपने गृह मंत्री कार्यकाल की एक घटना साझा की, जब एक युवा कश्मीरी महिला ने उनसे पूछा, “आप हम पर भरोसा क्यों नहीं करते? हर 50 फीट पर पुलिस क्यों तैनात है?” इस सवाल ने उन्हें झकझोर दिया। उन्होंने बताया कि उनकी सलाह पर 10,000 सैनिकों को कश्मीर से हटाकर सीमा पर तैनात किया गया था।

चिदंबरम ने कहा कि “उस महिला ने ‘पाकिस्तान सीमा’ नहीं, ‘भारतीय सीमा’ कहा था। यह दिखाता है कि कश्मीरी भारत का हिस्सा रहना चाहते हैं, लेकिन उन्हें सम्मान और विश्वास चाहिए।”चिदंबरम ने कश्मीर नीति में निरंतरता की कमी पर चिंता जताई। “लोकतंत्र में सरकारें बदलती हैं, लेकिन नीतियों में एकरूपता होनी चाहिए। कश्मीर के लिए कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं बनी।”

उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के प्रयासों की तारीफ की, खासकर मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ बैकचैनल वार्ता की, जो समाधान के करीब थी लेकिन पूरी नहीं हो सकी।

पंजाब: आर्थिक तंगी और खालिस्तान का मिथक
पंजाब पर चिदंबरम ने कहा कि खालिस्तान और अलगाववाद की मांग अब लगभग खत्म हो चुकी है। “पंजाब की असली समस्या आर्थिक है। बेरोजगारी युवाओं को अवैध प्रवास की ओर धकेल रही है।” उन्होंने बताया कि पंजाब से सबसे ज्यादा लोग अवैध रास्तों से विदेश जाते हैं, इसके बाद गुजरात और तेलंगाना का नंबर आता है। “लोगों को बेहतर जिंदगी का सपना दिखाया जाता है, लेकिन वे अक्सर धोखे का शिकार हो जाते हैं।”

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ऑपरेशन ब्लू स्टार को एक सामूहिक गलती बताते हुए चिदंबरम ने कहा, “यह सिर्फ इंदिरा गांधी की गलती नहीं थी। सेना, पुलिस और खुफिया एजेंसियों की भी भूमिका थी। लेकिन इसकी कीमत इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।” उन्होंने ऑपरेशन ब्लैक थंडर की तारीफ की, जिसमें पुलिस ने स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराया, जिसे उन्होंने ज्यादा समझदारी भरा कदम बताया।

अयोध्या: हिंसा और मिथकों की सच्चाई
बाबरी मस्जिद विध्वंस पर चिदंबरम ने कहा कि ऐसी “नासमझी भरी हरकतें” दंगे भड़काती हैं, जिनमें निर्दोष लोग मारे जाते हैं। उन्होंने बिलकिस बानो का उदाहरण दिया, जिनका पूरा परिवार 2002 के गुजरात दंगों में मारा गया। “राजनेताओं को आग भड़काने से बचना चाहिए।” बावेजा की बात का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि बीजेपी का कश्मीर में 40 मंदिर तोड़े जाने का दावा झूठा था। “कश्मीर में मंदिरों को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ था। यह मिथक बाबरी विध्वंस को सही ठहराने के लिए बनाया गया।

“आर्थिक चुनौतियां: विकास दर और बेरोजगारी
चिदंबरम ने भारत की आर्थिक स्थिति पर चिंता जताई। “1991 के सुधारों ने देश को 6% विकास दर पर ला दिया था, और 2004-08 में हमने 8.5-9% की वृद्धि देखी। लेकिन अब हम फिर 6% पर लौट आए हैं। हमें साहसी सुधारों और मजबूत नेतृत्व की जरूरत है।” उन्होंने शिक्षित युवाओं में 21% की बेरोजगारी दर को चिंताजनक बताया और इसे एक बड़ी राष्ट्रीय चुनौती करार दिया।

युवा और राष्ट्रवाद: सिद्धांतों में निष्ठा जरुरी 
युवाओं के सवाल पर चिदंबरम ने कहा कि राजनीति में निष्ठा जरूरी है, लेकिन यह सिद्धांतों के प्रति होनी चाहिए, न कि व्यक्तियों या झूठे आदर्शों के प्रति। “राष्ट्रवाद का मतलब संविधान के प्रति निष्ठा है, न कि किसी खास विचारधारा से। आज ‘आजादी’ जैसे शब्द को देशद्रोही माना जा रहा है, जो गलत है।”

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