Bandhu Mohanty Story: प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज ने अपने भक्तों को एक ऐसी कथा सुनाई, जो भक्ति और वैराग्य की मिसाल पेश करती है। यह कथा उड़ीसा के याजपुर गांव के एक गरीब भक्त बंधु महंती की है, जिनकी जीवन गाथा प्रभु की कृपा और समर्पण का जीवंत उदाहरण है। बंधु महंती बेहद निर्धन थे और अपने परिवार का भरण-पोषण भिक्षा मांगकर करते थे। उनके पास न धन था, न संपत्ति, और न ही सांसारिक सुख-सुविधाएं।
फिर भी, सत्संग के प्रभाव ने उनके हृदय में भगवद प्राप्ति की लालसा जगा दी। बंधु महंती अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन में चंद घरों में भिक्षा मांगते थे। वे कभी ज्यादा जमा नहीं करते थे, न ही भोग-विलास की चाह रखते थे। जो कुछ मिलता, उसी से परिवार का गुजारा हो जाता; नहीं तो भूखे रहकर भी वे संतुष्ट रहते। एकांत में वे प्रभु का नाम जपते और कीर्तन करते, जिससे उनके मन में भगवान के प्रति अटूट विश्वास जाग उठा।
उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, “अगर तुम मेरी सच्ची अर्धांगिनी बनना चाहती हो, तो मेरे साथ भजन और कीर्तन में लीन हो जाओ, क्योंकि मेरा जीवन का एकमात्र लक्ष्य भगवद प्राप्ति है।” उनकी पतिव्रता पत्नी ने पति की आज्ञा मानते हुए उनके साथ भक्ति के पथ पर चलना शुरू कर दिया।
समय बीतने के साथ बंधु महंती के मन में भगवान से मिलने की व्याकुलता बढ़ती गई। वे सोचने लगे कि ऐसे भक्तों की कृपा से उन्हें प्रभु का साक्षात्कार कैसे हो? भिक्षावृत्ति से जीते हुए उनके हृदय में वैराग्य स्वाभाविक था। एक दिन उन्होंने पत्नी से कहा, “इस गांव में मेरा कोई अपना नहीं।
कई दिनों से भोजन भी नहीं मिला। मेरा एक मित्र है, जो बहुत धनी और कृपालु है। उसका नाम दीनबंधु है। अगर तुम साथ चलो, तो पांच दिन की यात्रा करके हम उसके पास पहुंच सकते हैं, जहां भूख और दुख से मुक्ति मिलेगी।” पत्नी ने, भले ही भूख से कमजोर थी, पति की बात मानी और परिवार सहित यात्रा शुरू कर दी।
यात्रा में बच्चों को कंधे पर लादे और पत्नी के साथ, बंधु महंती ने भूख और थकान के बावजूद हिम्मत नहीं हारी। वे कोमल पत्ते और पानी से बच्चों का पेट भरते और मन ही मन प्रभु से प्रार्थना करते, “हे प्रभु, मुझे तुम तक पहुंचने की ताकत दो। भूख से प्राण जाएं, पर तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है।” पांच दिनों की कठिन यात्रा के बाद वे श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र, भगवान जगन्नाथ जी के धाम पहुंचे। दूर से ही दर्शन पाकर वे भाव-विभोर होकर जमीन पर गिर पड़े और बोले, “मेरे मित्र आ गए, मेरे प्रभु आ गए!”
उन्होंने पत्नी से कहा, “देखो, ये मेरे यार हैं, मेरे दीनबंधु स्वामी हैं।” भूख से व्याकुल पत्नी और बच्चे भी प्रभु के दर्शन से थोड़ा सांत्वना पाने लगे। लेकिन मंदिर के पट बंद होने के कारण वे अंदर नहीं जा सके। बंधु महंती ने पत्नी को धैर्य बंधाया और उन्हें पेज नाले के पास ले गए, जहां जगन्नाथ जी की प्रसादी के पात्र धोए जाते थे। वहां उन्होंने प्रसादी का जल पीकर बच्चों और पत्नी को भी पिलाया, कहते हुए, “हम भाग्यशाली हैं कि प्रभु का प्रसाद मिला।
“रात में, जब वे कीर्तन में लीन थे, प्रभु जगन्नाथ ने ब्राह्मण का रूप धारण कर भंडार से सुंदर भोग की थाल लेकर उन्हें भेंट की। बंधु महंती ने उसे स्वीकार किया और परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया। सुबह जब मंदिर के सेवकों ने भंडार में थाल गायब पाई, तो उन्हें चोर समझकर पिटाई शुरू कर दी। लेकिन बंधु महंती ने धैर्य रखा और जय जगन्नाथ का जाप करते रहे।
इधर, प्रभु ने राजा प्रताप रुद्र को स्वप्न में आदेश दिया कि वे बंधु महंती का अपमान बंद करें और उन्हें मंदिर का हिसाब-किताब संभालने का अधिकार दें। राजा ने तुरंत जाकर बंधु महंती से क्षमा मांगी और उनके चरण छुए। आज भी बंधु महंती के वंशज जगन्नाथ पुरी के मंदिर में यह सेवा करते हैं। प्रेमानंद जी महाराज ने इस कथा के माध्यम से संदेश दिया कि प्रभु को पाने के लिए धन, जाति या सौंदर्य की जरूरत नहीं, बस अपनापन और समर्पण ही काफी है।
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