अनिल शर्मा |
Shibbothan Temple Miracle: हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के अधीन भरमाड़ में स्थित सिद्धपीठ शिब्बोथान मंदिर हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। देवभूमि हिमाचल की इस पावन स्थली भरमाड़ को सिद्ध संप्रदाय गद्दी, सिद्ध बाबा शिब्बोथान और सर्वव्याधि विनाशक के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर के संदर्भ में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं और कई इतिहासकारों ने भी इसकी विशेष मान्यता को लेकर अपने विचार प्रकट किए हैं।
मंदिर में हर वर्ष सावन-भादों माह में मेले लगते हैं तथा इस दौरान दूर-दराज से श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं। मंदिर का भंगारा यानी मिट्टी व जलामृत पीने से ही जहर विकारों से मुक्ति मिल जाती है। अब 20 जुलाई से शिब्बोथान मंदिर में मेलों का आगाज होगा।
Shibbothan Temple के गर्भ गृह में मौजूद हैं कई देवी-देवताओं की पिंडियां
मंदिर के पुजारी महंत राम प्रकाश वत्स के अनुसार, धार्मिक स्थल बाबा शिब्बोथान के गर्भ गृह में मछंदर नाथ, गोरखनाथ, क्यालू बाबा, अजियापाल, गूगा जाहरवीर मंडलिक, माता बाछला, नाहर सिंह, काम धेनु बहन गोगड़ी, बाबा शिब्बोथान, बाबा भागसूनाग, शिवलिंग, 10 पिंडियां और बाबा जी के 12वीं शताब्दी के लोहे के 31 संगल मौजूद हैं। इन संगलों की 101 लड़ियां हैं।
जब बाबा शिब्बोथान को जाहरवीर जी ने वरदान दिए और वह अपने स्थान पर वापस जाने लगे तो अपने अंश को संगलों (शंगल) के रूप में रखकर वह अपनी मंडली सहित यहां विराजमान हो गए। ये संगल केवल गुग्गा नवमी को ही निकालकर बाबा शिब्बोथान के थड़े पर रखे जाते हैं। इन संगलों को छड़ी भी कहा जाता है। नवमी के दिन पुनः इन्हें अगली गुग्गा नवमी तक लकड़ी की पेटी में रख दिया जाता है।
आज भी मंदिर के सामने प्रांगण में मौजूद है सदा हरा-भरा रहने वाला कांटों से रहित पवित्र बैरी (बेर) का पेड़
बाबा शिब्बोथान धाम भरमाड़ के पुजारी महंत राम प्रकाश वत्स ने जानकारी देते हुए बताया कि इस पावन स्थान में नव शक्ति का आधार नव पिंडियों सहित शिवलिंग कैलाश पर्वत आकार तुल्य है। बाबा जी के मंदिर के सामने सदा हरा-भरा रहने वाला कांटों से रहित पवित्र बैरी (बेर) का अद्भुत पेड़ देव तथा प्रकृति का अनूठा आध्यात्मिक संदेश देता है।
मंदिर के पूर्व छोर की तरफ ही वह भंगारा नामक स्थान है, जिसकी मिट्टी लोग घरों को ले जाते हैं, जिसे पानी में डालकर छिड़काव तथा स्नान से अनेक व्याधियां, भूत-प्रेत छाया व रोगों से मुक्ति मिलती है। बाबा शिब्बो जी के दरबार में सर्पदंश से पीड़ित हजारों लोग आते हैं तथा आशीर्वाद प्राप्त करके सकुशल घरों को लौटते हैं।
ब्रिटिश शासक वारेन हेस्टिंग्स ने करवाया था कुएं का निर्माण
महंत बताते हैं कि ब्रिटिश शासक वारेन हेस्टिंग्स 18वीं शताब्दी में यहां दर्शनार्थ आए थे और उन्होंने मंदिर के पास अपनी चारपाई लगा ली थी, लेकिन इसी दौरान उन्हें एक सांप ने जकड़ लिया। मौके पर मौजूद महंत ने अरदास की और सांप ने उन्हें छ बाबा शिब्बोथान कलयुग में भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं।
मुगलकालीन शैली में निर्मित इस मंदिर में सभी धर्मों के लोग दर्शनार्थ आते हैं। कहा जाता है कि लगभग 600 वर्ष पूर्व भरमाड़ के निकट सिद्धपुर थड़ के आलमदेव के घर में शिब्बू नामक बालक ने जन्म लिया। बाबा शिब्बो जन्म से पूर्ण रूप से दिव्यांग थे। उन्होंने जाहरवीर गूगा जी की दो वर्षों तक घने जंगलों में तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर जाहरवीर गूगा पीर ने बाबा शिब्बो को तीन वरदान दिए।
प्रथम वरदान में उन्होंने कहा कि यह स्थान आज से शिब्बोथान नाम से प्रसिद्ध होगा। दूसरे वरदान में उन्होंने कहा कि तुम नागों के सिद्ध कहलाओगे और इस स्थान से सर्पदंशित व्यक्ति पूर्ण रूप से ठीक होकर जाएगा। तुम्हारे कुल का कोई भी बच्चा अगर यहां पानी की तीन चूलियां जहर से पीड़ित व्यक्ति को पिला देगा तो पीड़ित व्यक्ति जहर से मुक्ति पाएगा और स्वस्थ हो जाएगा। तीसरे और अंतिम वरदान में उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर बैठकर तुमने तपस्या की है, उस स्थान की मिट्टी जहरयुक्त स्थान पर लगाने से विदेश में बैठा व्यक्ति भी जहर से मुक्ति पाएगा।
जहर का प्रभाव कम करता है बाबा जी की तपस्थली की मिट्टी
मंदिर के पुजारी महंत राम प्रकाश वत्स बताते हैं कि जिस बेरी और बिल के पेड़ के नीचे बैठकर बाबा शिब्बो ने तपस्या की, वह कांटों से रहित हो गई है। यह बेरी आज भी मंदिर परिसर में हरी-भरी है। मंदिर के समीप ही सिद्ध बाबा शिब्बोथान का भंगारा स्थल भी मौजूद है, जहां से लोग मिट्टी अर्थात भंगारा अपने घरों में ले जाते हैं और इसे पानी में मिलाकर अपने घरों के चारों ओर छिड़क देते हैं।
लोगों की आस्था है कि बाबा जी का भंगारा घरों में छिड़कने से घर में सांप, बिच्छू या अन्य घातक जीव-जंतु प्रवेश नहीं करते। मंदिर परिसर के नजदीक हनुमान और शिव मंदिर भी हैं, जहां पर लोग पूजा-अर्चना करते हैं। मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर में अपनी श्रद्धानुसार गेहूं, नमक व फुल्लियों का प्रसाद चढ़ाते हैं। मंदिर में माथा टेकने के बाद लोग मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं।
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