प्रजासत्ता ब्यूरो|
शिमला नगर निगम चुनाव का रास्ता साफ होने के बाद होने के बाद राजनितिक दलों ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है। हिमाचल विधानसभा चुनाव की तपिश के बाद राजधानी शिमला में सियासी पारा फिर से चढ़ना शुरू हो गया है। हालांकि अभी चुनाव का ऐलान नही हुआ लेकिन इससे पहले ही राजनीतिक दलों ने सियासत शुरू कर दी है। कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए यह चुनाव काफी अहम है।
कांग्रेस को सत्तासीन हुए महज ढाई महीने का समय हुआ है, और शिमला नगर निगम चुनाव ‘सुख’ की सरकार का दावा करने वाली हिमाचल की सुक्खू सरकार की पहली परीक्षा है। राजधानी की जनता का रूख बताएगा कि शिमला शहर की जनता सुक्खू की सरकार में कितना सुख महसूस कर रही है। माना जा रहा है कि शिमला चुनाव के नतीजे पूरे प्रदेश के लिए संदेश होंगे, जो 2024 में लोकसभा चुनाव के नतीजों पर असर डाल सकते हैं।
नगर निगम शिमला के इतिहास पर नजर डालें तो यह कांग्रेस का गढ़ रहा है, लेकिन 10 सालों से कांग्रेस नगर निगम की सत्ता से बाहर रही है। साल 2012 में मेयर और डिप्टी मेयर के डायरेक्टर चुनाव की वजह से नगर निगम पर माकपा ने कब्जा किया। साल 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को हराकर पहली बार निगम पर कब्जा किया था। कांग्रेस इस बार चुनाव में दोबारा सत्ता हासिल करने की तैयारी में है।
कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह है कि नगर निगम शिमला क्षेत्र में पड़ने वाले तीनों विधानसभा क्षेत्रों से विधायक कांग्रेस के जीते हुए हैं। पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है। शिमला शहरी से हरीश जनारथा, शिमला ग्रामीण से विक्रमादित्य सिंह और कसुम्प्टी से अनिरुद्ध सिंह जीते हुए हैं। बड़ी बात यह है कि इनमें अनिरुद्ध सिंह और विक्रमादित्य सिंह सुक्खू सरकार में मंत्री हैं।