Himachal Politics: हिमाचल प्रदेश की ठंडी हवाओं में इन दिनों सियासत की गर्मी छाई हुई है। प्रदेश कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। एक तरफ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू इस मुद्दे पर पूरी तरह से खामोश हैं, तो दूसरी तरफ पूर्व सीएम स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के परिवार की बेचैनी साफ़ नज़र आ रही है। वर्तमान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और उनके बेटे, कैबिनेट मंत्री विक्रमादित्य सिंह के हालिया बयानों ने इस सियासी हलचल को और हवा दी है।
दरअसल, पिछले छह महीनों से हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी भंग पड़ी है। जिला और ब्लॉक स्तर पर कोई पदाधिकारी नहीं, और सिर्फ़ प्रतिभा सिंह अकेले दम पर संगठन की बागडोर संभाल रही हैं। लेकिन अब खबरें हैं कि उनकी कुर्सी पर तलवार लटक रही है। सवाल यह है, क्या वीरभद्र परिवार को सचमुच डर है कि उन्हें हिमाचल की राजनीति में साइडलाइन किया जा रहा है?
प्रतिभा सिंह ने हाल ही में कहा, “मैंने हमेशा कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए पूरी ताकत से काम किया और आगे भी करती रहूँगी। अध्यक्ष पद का फैसला पार्टी हाईकमान के हाथ में है।” उनकी बातों में गर्व के साथ-साथ एक हल्का सा दर्द भी झलकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी पद की लालसा नहीं रखतीं, लेकिन हाईकमान ने जो भी जिम्मेदारी दी, उसे उन्होंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया है।

हिमाचल की सियासत में वीरभद्र सिंह का कद आज भी एक मिसाल है। प्रतिभा सिंह कहती हैं, “वीरभद्र जी ने कभी गुटबाज़ी या क्षेत्रवाद को बढ़ावा नहीं दिया, लेकिन आज हम कहीं न कहीं उनके उस रास्ते से भटक रहे हैं।” उनकी यह बात संगठन और सरकार के बीच तालमेल की कमी से उपजे दर्द को उजागर करती है।
वहीं, उनके बेटे और लोक निर्माण विभाग मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी साफ़ शब्दों में कहा कि, “पार्टी अध्यक्ष कोई रबर स्टांप नेता नहीं होना चाहिए। उसे कम से कम तीन-चार जिलों में जनाधार वाला नेता होना चाहिए।”
उनका यह बयान कहीं न कहीं संकेत देता है कि वीरभद्र परिवार को अपनी विरासत को किनारे करने की कोशिश का डर सता रहा है। खासकर तब, जब यह चर्चा जोरों पर है कि हिमाचल में किसी दलित नेता या सुक्खू के करीबी को अध्यक्ष पद सौंपा जा सकता है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू संगठन और अध्यक्ष पद की नियुक्ति को लेकर खामोश हैं। सूत्रों की मानें तो सुक्खू अपने करीबी नेताओं को संगठन में अहम जगह देना चाहते हैं। पिछले कुछ महीनों में सुक्खू, उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री और प्रतिभा सिंह ने दिल्ली में पार्टी हाईकमान से कई मुलाकातें कीं।
चर्चा है कि नई कार्यकारिणी और अध्यक्ष की नियुक्ति में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन का ख्याल रखा जाएगा। लेकिन सवाल वही है कि, क्या इस संतुलन में वीरभद्र परिवार की जगह बचेगी?
सीएम सुक्खू और उनके सहयोगी कई मंचों पर वीरभद्र परिवार को तवज्जो देने की बात करते नज़र आते हैं, लेकिन कहीं न कहीं यह कोशिश पार्टी में होने वाले विरोध से बचने की रणनीति लगती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वीरभद्र परिवार की सक्रियता और उनके बयानों से साफ़ है कि वे अध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी को मज़बूत रखना चाहते हैं। विक्रमादित्य के बयानों से यह भी जाहिर है कि परिवार अपनी विरासत को लेकर सजग है और नहीं चाहता कि कोई ऐसा नेता अध्यक्ष बने, जो सिर्फ़ हाईकमान और सीएम सुक्खू और उनके सहयोगियों के इशारे पर चले।
अब हर हिमाचली के मन में यही सवाल है, कि क्या वीरभद्र परिवार की विरासत को सम्मान मिलेगा, या नई सियासत में उनकी आवाज़ दब जाएगी? यह खींचतान सिर्फ़ कुर्सी की नहीं, बल्कि हिमाचल कांग्रेस के भविष्य की है। क्या पार्टी हाईकमान इस सियासी जंग को खत्म कर एक ऐसा संगठन बनाएगा, जो न सिर्फ़ कुर्सी की सियासत को थामे, बल्कि कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को भी जिंदा रखे?
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