Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पावर कॉर्पोरेशन के मुख्य अभियंता विमल नेगी की मौत के मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत में बुधवार को इस मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने शिमला पुलिस को बिना अनुमति के चार्जशीट दायर करने पर रोक लगा दी है।
अगले एक-दो दिनों में फैसला आने की संभावना है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा जाएगा या नहीं। सरकार ने कोर्ट को दो जांच रिपोर्ट सौंपी हैं: एक अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) ओंकार चंद शर्मा की प्रशासनिक जांच रिपोर्ट और दूसरी पुलिस की 134 पेज की तथ्य-खोजी (फैक्ट-फाइंडिंग) रिपोर्ट। इन दोनों रिपोर्टों को कोर्ट ने अपने रिकॉर्ड में शामिल कर लिया है।
महाधिवक्ता अनूप रतन ने कोर्ट से आग्रह किया कि चल रही जांच के कारण इन रिपोर्टों को सार्वजनिक न किया जाए। सरकार ने इस मामले में दो विशेष जांच टीमें (एसआईटी) गठित की हैं। पहली एसआईटी डीजीपी द्वारा विमल नेगी के लापता होने के बाद बनाई गई थी, जबकि दूसरी उनकी मौत के बाद सरकार द्वारा गठित की गई। परिजनों ने सरकार की जांच पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

उनके अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि सरकार निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है और इस मामले को सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए। उन्होंने ओंकार चंद शर्मा की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग भी की, जिसे कोर्ट ने फिलहाल स्वीकार नहीं किया। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता के पति विमल नेगी 10 मार्च, 2025 से लापता थे।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उनकी मौत तीन दिन पहले होने की बात सामने आई है। इससे यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह आत्महत्या थी या किसी ने उनकी हत्या की साजिश रची। पुलिस अभी तक इसकी सटीक वजह नहीं ढूंढ पाई है।
परिजनों ने आरोप लगाया कि पावर कॉर्पोरेशन के निदेशक देशराज, निलंबित प्रबंध निदेशक हरिकेश मीणा और शिवम प्रताप ने विमल नेगी पर गलत कार्यों के लिए मानसिक दबाव डाला। उन्हें लंबे समय तक कार्यालय में बिठाकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। इस मामले को पेखूबेला प्रोजेक्ट में कथित घोटाले से भी जोड़ा जा रहा है, जिसका उल्लेख जांच रिपोर्ट में किया गया है।
पुलिस ने दो अलग-अलग स्टेटस रिपोर्ट दायर की हैं। महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सरकार को इन दोनों रिपोर्टों की जानकारी नहीं थी। सरकार निष्पक्ष जांच चाहती है और समय आने पर अतिरिक्त मुख्य सचिव की रिपोर्ट को स्वयं सार्वजनिक करेगी, ताकि परिजनों को न्याय मिले और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई में पारदर्शिता बनी रहे।
उन्होंने बताया कि विमल नेगी के लापता होने से पहले डीजीपी ने एक एसआईटी गठित की थी। उनकी मौत के बाद सरकार ने दूसरी एसआईटी बनाई। डीजीपी की एसआईटी के एक अधिकारी ने एक महत्वपूर्ण पेन ड्राइव छिपाई थी, जिसे बाद में दूसरी एसआईटी ने अपने कब्जे में ले लिया।
महाधिवक्ता अनूप रतन ने कोर्ट से मांग की कि अतिरिक्त मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक न किया जाए। मुख्यमंत्री के निर्देश पर यह जांच कराई गई थी, और ओंकार चंद शर्मा ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है। हालांकि, इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिस पर परिजन सवाल उठा रहे हैं। परिजनों का कहना है कि जांच में पारदर्शिता की कमी है और वे इस मामले में निष्पक्षता चाहते हैं।
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