Himachal News: देश में बनने वाली दवाएं पिछले कुछ सालों से अपनी गुणवत्ता को लेकर सवालों के घेरे में हैं। इस बीच केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने पाया है कि भारत में उत्पादित 50 जीवनरक्षक दवाओं, जिसमें पैरासिटामोल 500 मिलीग्राम, कुछ विटामिन और कैल्शियम की गोलियों के साथ ही कुछ बेहद सामान्य दवाएं शामिल हैं, की क्वालिटी सही नहीं है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन 50 दवाओं में से 22 का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में होता है। राज्य दवा प्राधिकरण ने कथित तौर पर संबंधित दवा कंपनियों को नोटिस भेजा है और उनसे संबंधित दवा के पूरे बैच को बाजार से वापस लेने को कहा गया है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जिन दवाओं को निम्न क्वालिटी का पाया गया है, उसमें पैरासिटामोल 500 मिलीग्राम के अलावा टेल्मिसर्टन एंटी-हाइपरटेंशन दवा, कफटिन कफ सीरप, सीज़र अटैक को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली क्लोनाज़ेपम गोलियां, दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनाक, मल्टी-विटामिन और कैल्शियम की गोलियों के नाम शामिल हैं।
हिमाचल में निर्मित दवाओं के फेल हुए नमूनों में गले में संक्रमण, उच्च रक्तचाप (बीपी), कैंसर, दर्द, बैक्टेरियल इन्फेक्शन, अल्सर, खांसी, एलर्जी, वायरस संक्रमण, एसिडिटी, दर्द निवारक, खुजली और बुखार से संबंधित दवाएं शामिल हैं। इनमें से कई दवाएं बिना लेबल के पाई गईं और उनमें से कुछ नकली भी थीं।
भारत में बनी हर तीसरी दवा में से एक हिमाचल में निर्मित होती है’
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर में मुताबिक “राज्य औषधि नियंत्रक मनीष कपूर ने बताया कि उन्हें फेल हुई दवाओं के सैंपल पर सीडीएससीओ से अलर्ट मिला है। उनके अनुसार, समय-समय पर उनके औषधि निरीक्षक दवाओं के नमूने लेते रहते हैं और दोषी दवा कंपनियों के खिलाफ कॉस्मेटिक और ड्रग अधिनियम के तहत आगे की कार्रवाई की जाती है।
मनीष कपूर ने आगे कहा, ‘देश में उत्पादित हर तीसरी दवा में से एक हिमाचल में निर्मित होती है। ऐसे में दवाओं की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जा सकता।
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