Genome Rice: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने लंबे इंतजार के बाद जीनोम एडिटेड चावल की दो नई किस्में पेश की हैं, जो किसानों के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती हैं। ICAR का दावा है कि इन किस्मों से धान की पैदावार 20-30% तक बढ़ सकती है। 4 मई 2025 को जारी इन किस्मों ने पूरे देश का ध्यान खींचा है, क्योंकि ये न केवल जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटेंगी, बल्कि कम पानी और खाद के साथ कम समय में तैयार होंगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा बनाई गई जीनोम एडिटेड चावल की दो नई किस्में की खासियत कम लागत, कम पानी और कम समय में अधिक उत्पादन है। इससे 30 फीसदी तक धान का उत्पादन बढ़ जाएगा और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को भी कम करने में मदद मिलेगी। आइये जानते हैं क्या इसकी खासियत
Genome Rice: सांबा महसूरी और MTU1010
इन दो नई किस्मों सांबा महसूरी (Samba Mahsuri) और MTU1010 को जीनोम एडिटिंग (GE) तकनीक से बेहतर बनाया गया है। साल 2008 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य था ऐसी फसल तैयार करना, जो अधिक उपज दे, कम संसाधनों की जरूरत हो और पर्यावरण के लिए अनुकूल हो। ये किस्में:

- 19-30% अधिक पैदावार देती हैं।
- कम समय में पककर तैयार होती हैं।
- पानी और खाद की कम जरूरत पड़ती है।
- मीथेन उत्सर्जन को कम करती हैं।
ये खासियतें दक्षिण मध्य और पूर्वी भारत के किसानों के लिए वरदान हैं, जहां जलवायु संकट और संसाधनों की कमी बड़ी चुनौती है।
नवाचार की खेती, खुशहाल किसान!
जीनोम संपादन से भारतीय कृषि में एक नया आयाम जुड़ा है।
माननीय केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने जीनोम-संपादित धान की दूसरी किस्म PUSA RICE DST 1 के बारे में बताया कि ये किस्म हमारे किसान भाइयों-बहनों के… pic.twitter.com/QtVvLKRx4E— Agriculture INDIA (@AgriGoI) May 4, 2025
जीनोम एडिटिंग: कैसे बनी ये सुपर फसल?
जीनोम एडिटिंग में CRISPR-Cas तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जो डीएनए को सटीक रूप से संशोधित करने का काम करता है। यह तकनीक पौधे के जीन में बदलाव कर अनाज की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाती है। GE फसलें GM (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलों से अलग हैं, क्योंकि इसमें कोई बाहरी डीएनए नहीं डाला जाता, बल्कि पौधे के मौजूदा जीन को ही बेहतर बनाया जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तकनीक तेज, सटीक और सुरक्षित है।
क्या GE तकनीक दूसरी फसलों के लिए भी?
ICAR का कहना है कि GE तकनीक का इस्तेमाल दालों और तिलहनों जैसी फसलों पर भी किया जा सकता है। इससे भारत की आयात पर निर्भरता (विशेष रूप से 20 अरब डॉलर सालाना के दाल और तिलहन आयात) कम होगी। सरकार ने इस दिशा में 500 करोड़ रुपये का निवेश किया है, और ICAR इन फसलों पर GE अनुसंधान तेज कर रहा है। चावल के बाद यह तकनीक भारत की खाद्य सुरक्षा को और मजबूत कर सकती है, खासकर जब भारत पहले से ही चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है।
क्या GE फसलें सुरक्षित हैं?
वैज्ञानिकों के अनुसार, GE फसलें मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सामान्य फसलों जितनी ही सुरक्षित हैं। ये पारंपरिक संकरण (क्रॉसिंग) की तुलना में तेजी से बेहतर परिणाम देती हैं। हालांकि, GM-Free भारत गठबंधन ने GE फसलों को बिना कड़े सुरक्षा मूल्यांकन के जारी करने की आलोचना की है। दूसरी ओर, GM फसलों को सख्त नियमों के तहत नियंत्रित किया जाता है, जबकि GE को अपेक्षाकृत कम नियमन का सामना करना पड़ता है।
किसानों के लिए संजीवनी
कम पानी, कम खाद और कम समय में अधिक पैदावार देने वाली ये नई चावल की किस्में जलवायु संकट के दौर में किसानों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये चावल स्वाद और गुणवत्ता में भी बाजार की उम्मीदों पर खरा उतरेगा? देश की नजरें इस सवाल पर टिकी हैं। ICAR की यह पहल न केवल किसानों की आय बढ़ाएगी, बल्कि भारत को वैश्विक कृषि नवाचार में भी अग्रणी बनाएगी।
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