Shimla Minor Girl Sexual Abuse Case: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नाबालिग से यौन शोषण के गंभीर मामले में डॉक्टर विनय जिष्टु की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। उन पर नाबालिग लड़की से यौन शोषण और बलात्कार का आरोप है। यह मामला शिमला के महिला थाने में 4 सितंबर 2025 को दर्ज FIR नंबर 22/2025 से जुड़ा है, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 64(2)(m) और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत अपराध दर्ज किया गया है।
पुलिस के अनुसार, पीड़िता ने शिकायत में बताया कि वह अपने बीमार पिता के इलाज के लिए पिछले 9-10 महीनों से इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (IGMC) में आ रही थी। इस दौरान उसकी मुलाकात आरोपी डॉक्टर विनय जिष्टु से हुई। शिकायत के मुताबिक, 29 अक्टूबर 2024 को OPD में मुलाकात के बाद डॉक्टर ने पीड़िता के साथ नजदीकियां बढ़ाईं और 11 दिसंबर 2024 से 26 अगस्त 2025 तक उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। पीड़िता उस समय 17 साल की थी और 4 मई 2007 को जन्मी होने के कारण नाबालिग थी।
पुलिस ने जांच के दौरान पीड़िता का मोबाइल फोन, होटल की एंट्री रजिस्टर, और डॉक्टर का आधार कार्ड बरामद किया। पीड़िता ने उस स्थान की पहचान की जहां उसके साथ बलात्कार हुआ। पुलिस ने साइट प्लान तैयार किया और बरामद सामग्री को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा है। पीड़िता ने मेडिकल जांच से इनकार कर दिया, लेकिन पुलिस का कहना है कि होटल रजिस्टर और आधार कार्ड जैसे सबूत प्रथम दृष्टया पीड़िता के बयान की पुष्टि करते हैं।
हिमाचल हाईकोर्ट दायर याचिका में डॉक्टर विनय जिष्टु ने कोर्ट में दावा किया कि उसे झूठा फंसाया गया है। उनके वकील पीयूष वर्मा ने तर्क दिया कि पीड़िता ने डॉक्टर के वैवाहिक जीवन में परेशानियों की जानकारी के बाद शादी का प्रस्ताव दिया था, जिसे ठुकराने पर उसने झूठी शिकायत दर्ज की। उन्होंने यह भी कहा कि पीड़िता ने मेडिकल जांच से इनकार किया, जिससे उसका बयान संदिग्ध है।
जस्टिस राकेश कैंथला ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला गंभीर है, क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी और उसका कथित सहमति भी पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध को खत्म नहीं करती। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अग्रिम जमानत असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती है। इस मामले में पुलिस को जांच के लिए याचिकाकर्ता की हिरासत जरूरी है, क्योंकि यह प्रारंभिक चरण में है। कोर्ट ने माना कि डॉक्टर ने मरीज और चिकित्सक के पवित्र रिश्ते का उल्लंघन किया, जो गंभीर अपराध है।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस के पास प्रथम दृष्टया सबूत हैं जो याचिकाकर्ता की संलिप्तता दर्शाते हैं। साथ ही, हिरासत में पूछताछ जांच को मजबूत करने के लिए जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले (P. Chidambaram v. Directorate of Enforcement) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत देने से जांच बाधित हो सकती है। याचिकाकर्ता के वकील द्वारा पेश किए गए अन्य मामलों को कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध से असंबंधित बताकर खारिज कर दिया।












