हीरा दत्त शर्मा |
Maan Chandi Devi Shakti Peeth: हिमाचल प्रदेश, जो अपने शक्ति स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, में कई धार्मिक स्थल विश्व पटल पर अपनी पहचान बना चुके हैं, जबकि कुछ अभी भी उभरने की राह पर हैं। ऐसा ही एक उभरता हुआ शक्ति स्थल है माँ चंडी देवी मंदिर, जो हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले, कसौली तहसील और प्राचीन पट्टा महलोग रियासत के चंडी गांव में स्थित है। यह मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक विशेषताओं के कारण श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र बन रहा है।
पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती के क्षत-विक्षत शरीर को कैलाश ले जा रहे थे, तब जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ शक्ति पीठ स्थापित हुए। माँ चंडी देवी मंदिर भी ऐसा ही एक पवित्र स्थल है, जो पिंडी रूप में माता के प्रकट होने की कथा से जुड़ा है। स्थानीय किवदंती के अनुसार, एक किसान जब अपने खेत में हल जोत रहा था, तो हल की फाल से एक पत्थरनुमा पिंडी से रक्त बहता दिखा।
भयभीत और आश्चर्यचकित किसान ने जब इसकी चर्चा गाँव वालों से की, तो रात में उसे स्वप्न में माँ चंडी ने दर्शन दिए। माँ ने निर्देश दिया कि इस पिंडी को गाँव में स्थापित कर नित्य पूजा की जाए, जिससे क्षेत्र का कल्याण होगा। इसके बाद, गाँव वालों ने विधिवत पूजन और मंत्रोच्चारण के साथ पिंडी को चौकी पर स्थापित किया।
ऐतिहासिक दृष्टि से, इस मंदिर की स्थापना 1910 में पट्टा महलोग रियासत के तत्कालीन मैनेजर मियां भवानी सिंह ने माँ चंडी के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा के साथ की थी। आज यह मंदिर धार्मिक आस्था और निष्ठा का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
मंदिर का प्राकृतिक और धार्मिक आकर्षण
माँ चंडी देवी मंदिर चारों ओर हरी-भरी घाटियों और ऊँचे पर्वतीय शिखरों से घिरा हुआ है, जो इसे प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का अनुपम स्थल बनाता है। चंडी गाँव का नामकरण भी माँ चंडी के नाम पर हुआ है। चंडी मंदिर विकास समिति की देखरेख में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है, जिससे इसकी भव्यता और बढ़ गई है। नवरात्रों के दौरान यहाँ हजारों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
मंदिर की पवित्रता को और बढ़ाता है पास ही स्थित गुरु जोहड़ जी महाराज का पवित्र स्थल, जहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु आते हैं। जोहड़ जी मेले के दौरान, माँ चंडी देवी मंदिर में भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इस अवसर पर मंदिर समिति और स्थानीय लोग भंडारे का आयोजन करते हैं, जिसमें दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं की सेवा की जाती है।
चंडी मेला: एक सांस्कृतिक उत्सव
माँ चंडी देवी मंदिर के परिसर में हर साल 15 और 16 ज्येष्ठ (28-29 मई) को जिला स्तरीय चंडी मेला आयोजित होता है, जिसे स्थानीय लोग चंडी की जातर भी कहते हैं। यह मेला पिछले 100 वर्षों से निरंतर आयोजित हो रहा है और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे बड़ा मेला माना जाता है। मेले में लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा में मनोकामनाएँ लेकर पहुँचते हैं। रबी की फसल कटाई के बाद भक्त अपनी नई फसल का पहला हिस्सा माँ के चरणों में समर्पित करते हैं। माँ चंडी को इस क्षेत्र की कुलदेवी माना जाता है, जिसके प्रति स्थानीय लोगों की गहरी श्रद्धा है।
मंदिर की भौगोलिक स्थिति
माँ चंडी देवी मंदिर सोलन से 45 किमी, सुबाथू से 21 किमी, कुनिहार से 18 किमी, हरिपुर गुरुद्वारे से 12 किमी, और नालागढ़ से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ से कसौली, शिमला, और हिमाचल की बर्फीली चोटियों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। मंदिर के समीप भुमलेश्वर महादेव मंदिर और गोयला के छमकड़ी शिव मंदिर भी इस क्षेत्र की धार्मिक और ऐतिहासिक विरासत को और समृद्ध करते हैं।
हालाँकि माँ चंडी देवी मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में यह अभी विश्व स्तर पर उतनी प्रसिद्धि नहीं पा सका है। फिर भी, स्थानीय लोगों और मंदिर समिति के प्रयासों से यह मंदिर धीरे-धीरे एक प्रमुख शक्ति पीठ के रूप में उभर रहा है। हिमाचल प्रदेश के पर्यटन विभाग की ओर से ध्यान दिए जाने पर यह मंदिर विश्व मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन सकता है।
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