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Shipki La Pass: शिपकिला दर्रे में बॉर्डर टूरिज्म की पहल, भारत-तिब्बत के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक सेतु की नई उम्मीद..!

Shipki La Pass: शिपकिला दर्रे में बॉर्डर टूरिज्म की पहल, भारत-तिब्बत के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक सेतु की नई उम्मीद..! India-China Shipki-la Pass Trade Deal

Shipki La Pass Himachal Pradesh: किसी ने सच ही कहा है कि सीमाएं देशों को बांटती हैं, लेकिन संस्कृति आस्था और व्यापार उन्हें जोड़ने का काम करती हैं। इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाल ही में शिपकिला में बॉर्डर टूरिज्म (Shipki La Pass Border Tourism) को बढ़ावा देने की पहल की है, जिससे न केवल स्थानीय पर्यटन को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि भारत और तिब्बत के बीच सॉफ्ट डिप्लोमेसी को भी बल मिलने की संभावना है।

दरअसल, हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में 3930 मीटर की ऊंचाई पर स्थित शिपकिला दर्रा (Shipki La Pass) जो कि सदियों तक भारत और तिब्बत के बीच में सेतु के रूप में एक संपर्क का माध्यम रहा है जहां व्यापारिक सौदों से अधिक महत्वपूर्ण थे वह सांस्कृतिक बंधन जो पहाड़ों की कठोरता के बीच भी नहीं टूटे, लेकिन अब लंबे समय से एक गतिरोध का शिकार था।

शिपकिला दर्रा, जो सतलुज नदी के प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है, 15वीं शताब्दी से व्यापारिक मार्ग के रूप में उपयोग में रहा है। जब कभी इस दर्रे की बात आती है इस को लेकर बहुत सारी चर्चाएं हैं। एक तो इस दर्रे बहुत सारे आख्यान और लोक मत जुड़े हुए हैं जिसकी वजह से लोगों का इससे एक इमोशनल अटैचमेंट भी है साथ ही साथ दो देशों के बॉर्डर पर यह स्थित दर्रा दोनों देशों के सांस्कृतिक जुड़ाव का भी प्रतीक है।

हालांकि भारत और चीन के बीच में लंबे समय तक जब गतिरोध हुआ तो यह मार्ग जो कि पहले व्यापारिक मार्ग हुआ करता था, इसको बंद कर दिया गया लेकिन दोनों देशों की संस्कृति को कनेक्ट करने के लिए यह एक अच्छा माध्यम माना जाता है। शिपकिला दर्रा, जो सतलुज नदी के प्रवेश द्वार के रूप में भी जाना जाता है, 15वीं शताब्दी से व्यापारिक मार्ग के रूप में उपयोग में रहा है।

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लोक कथाओं के अनुसार, यह मार्ग उससे भी पुराना है। यह दर्रा भारत और तिब्बत के बीच सांस्कृतिक एकता का प्रतीक रहा है। स्थानीय लोक कथाएं बताती हैं कि जब तक मानसरोवर का पानी नहीं सूखता, काला कौवा सफेद नहीं होता, और रिजु पुगल पर्वत समतल नहीं हो जाता, तब तक यह व्यापारिक मार्ग जीवित रहेगा। यह भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है।

ऐतिहासिक रूप से, इस मार्ग से ऊन, धार्मिक वस्तुएं जैसे प्रार्थना चक्र, माला, कीमती धातुएं, और पुखराज जैसी वस्तुएं तिब्बत से भारत में आती थी, जबकि भारत से अनाज, मसाले, तांबा, पीतल के बर्तन, और सूखे मेवे तिब्बत को निर्यात किए जाते थे। लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध, 2017 के डोकलाम गतिरोध, और कोविड-19 महामारी जैसे कारणों से यह व्यापारिक मार्ग बंद रहा।Shipki La Pass: शिपकिला दर्रे में बॉर्डर टूरिज्म की पहल, भारत-तिब्बत के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक सेतु की नई उम्मीद..!

Shipki La Pass में बॉर्डर टूरिज्म की शुरुआत

लेकिन हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस मार्ग को संस्कृति आस्था और व्यापारिक स्तर पर एक बार फिर से जोड़ने की उम्मीद के साथ बॉर्डर टूरिज्म को पुनर्जीवित करने की एक पहल की है। बता दें कि बीते 10 जून, 2025 को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा शिपकिला दर्रे पर बॉर्डर टूरिज्म की शुरुआत की गई है।
पहले इस क्षेत्र में जाने के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती थी, लेकिन अब घरेलू पर्यटक आधार कार्ड जैसे पहचान पत्र के साथ आसानी से इस क्षेत्र की यात्रा कर सकते हैं। इसका उद्देश्य स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देना और क्षेत्रीय विकास को गति देना है।

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मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने यह भी कहा कि राज्य सरकार किन्नौर जिले में शिपकीला के जरिए कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने का मुद्दा केंद्र सरकार के समक्ष उठाएगी। कैलाश मानसरोवर यात्रा का हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों के लिए धार्मिक महत्व है और हर साल हजारों तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते हैं। तीर्थयात्री शिपकी-ला के माध्यम से तिब्बत में प्रवेश कर सकते हैं क्योंकि यह उनके लिए एक व्यवहार्य मार्ग है।

सामान्य तौर पर, कैलाश मानसरोवर की यात्रा लिपुलेख मार्ग से 14-18 दिन लेती है, जिसमें दिल्ली से धारचूला, गुंजी, और लिपुलेख होते हुए तिब्बत तक का सफर शामिल है। यदि शिपकिला दर्रा कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए खुलता है, तो सड़क मार्ग से (राष्ट्रीय राजमार्ग 5 के माध्यम से) किन्नौर से तिब्बत के न्गारी प्रान्त तक पहुंचने में लगभग 4-6 दिन में पूरी हो जायगी। भविष्य में यदि शिपकिला मार्ग खुलता है, तो यह यात्रा को और आसान बना सकता है।

जाहिर तौर सीमा के इस पार भारत है उस पार तिब्बत है लेकिन यहां पर दोनों देशों की सांस्कृतिक गतिविधियां (Cultural Activities) हैं उसमें काफी सिमिलरिटीज हैं दोनों तरफ बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं यहां भी हैं साथ-साथ यहां भी कुछ ऐसे कॉमन नेम और टाइटल पाए जाते हैं। जब दोनों देशों में यात्राएं होंगी तो एक तरह का इकोनॉमिक कॉरिडोर डेवलप हो जाएगा और जिससे यहां के लोगों का भी क्षेत्रीय विकास होगा, चाहे होटल की सेवा हो परिवहन की सेवा सभी का विस्तार होगा जिससे क्षेत्रीय स्तर पर लोग लाभान्वित होंगे और इसेंस से दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर बनते जाएंगे।

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शिपकीला दर्रा जो कहीं ना कहीं से पुराना इतिहास रहा है उस इतिहास को बॉर्डर टूरिज्म के माध्यम से एक सॉफ्ट डिप्लोमेसी की तरफ बढाने की कोशिश हो सकती है। क्योंकि जब दो देशों के बीच में कूटनीतिक संबंध कायम नहीं होते हैं तो सॉफ्ट डिप्लोमेसी का सहारा लिया जाता है।

सॉफ्ट डिप्लोमेसी (Soft Diplomacy) एक ऐसी रणनीति है जिसमें पर्यटन, खेल, संस्कृति जैसे सामाजिक व सांस्कृतिक माध्यमों से देशों के बीच संबंध मजबूत किए जाते हैं। इससे पीपल-टू-पीपल कनेक्टिविटी बढ़ती है, जिससे न सिर्फ क्षेत्रीय विकास होता है, बल्कि व्यापार और आर्थिक सहयोग के ज़रिए दोनों देशों के बीच विश्वास और संबंध भी बेहतर होते हैं।

स्वाति सिंह वर्तमान में प्रजासत्ता मीडिया संस्थान में बतौर पत्रकार अपनी सेवाएं दे रही है। इससे पहले भी कई मीडिया संस्थानों के साथ पत्रकारिता कर चुकी है।

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