दशकों बाद भी “कुपवी बिशु मेला” को प्राप्त नही हुआ जिलास्तरीय मेला का दर्जा, क्षेत्र के लोगों ने रखी दर्जा बढ़ाने की मांग

शिमला|
शिमला जिला के कुपवी में आयोजित होने वाला “कुपवी बिशु मेला” रामपुर की लवी, मंडी की शिवरात्रि और सोलन के शूलिनी मेले की बराबरी करता था। वर्ष 1960 के मेले-त्योहारों का रिकॉर्ड देखे तो ये जानकारी निकाल कर सामने आती है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कुपवी बिशु मेला बड़े ही धूम-धाम व हर्षोलास के साथ 27 व 28 अप्रैल को मनाया जाएगा।

मीडिया को जानकारी देते हुए शार्प संस्था, कुपवी लोकेंद्र चौहान व सुदर्शन धिरटा ने बताया कि
रियासत काल मे कुपवी बिशु जुब्बल रियासत में मनाए जाने वाले 3 प्रमुख बिशु मे से एक था। वर्ष 1960 के आसपास के यदि मेले-त्योहारों का रिकॉर्ड देखे तो ये जानकारी निकाल कर आती है कि जन-उपस्थिति के मामले में कुपवी बिशु मेला, रामपुर की लवी, मंडी की शिवरात्रि और सोलन के शूलिनी मेले की बराबरी करता था।

जनता के लिए बिशु में मुख्य आकर्षण जा केंद्र पौराणिक वाद्य यंत्रों के साथ देव-धुनों पर झूमते लोगो के अलावा, देव-धुन पर किया जाने वाला पौराणिक ढोल नृत्य और पारंपरिक ठोडा खेल रहता है, जिसे महाभारत कालीन खेल माना जाता है। जिसमे 2 दल शाठी(कौरव) व पाशी(पांडव) आपस मे तीर-कमान के साथ खेल का प्रदर्शन करते है तहसील कुपवी के एकमात्र बिशु, कुपवी बिशु में हजारों की संख्या में लोग पहुँचते है।

बिशु की शुरुवात शिरगुल महाराज जी के कुपवी मंदिर में पूजा अर्चना के बाद की जाती है। चेहता परगना के 4 प्रमुख देवता थान कांडा-बनाह, कुलग, सनत से शिरगुल महाराज जी व कोठी-आहनोग से बिजट महाराज जी बिशु में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाके बिशु को शोभायमान करते है 2 दिन तक जनता के दर्शन के लिए इन सभी देवताओ को कुपवी के शिरगुल महाराज जी मंदिर में रखा जाता है।

प्रदेश के कई मेले आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं। वहीं कुपवी बिशु मेला अभी तक जिला स्तर पर भी मान्यता प्राप्त नही कर पाया है। क्षेत्रवासियों की ओर से शार्प संस्था ये मांग करती है कि ऐतिहासिक और पारंपरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ये उत्सव सरकार के ध्यान में आये। और सरकार इसे कम से कम जिला स्तर पर मान्यता दिलवाए ताकि मेले का सही से आयोजन हो सके।

Tek Raj
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