संस्कृति, संस्कार और जीवन मूल्यों की संवाहक : हिन्दी

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✍🏻 – डॉ. सुरेन्द्र शर्मा
जब कोई राष्ट्र अपने गौरव में वृद्धि करता है तो वैश्विक दृष्टि से उसकी प्रत्येक विरासत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। परम्पराएँ, नागरिक दृष्टिकोण और भावी संभावनाओं के केन्द्र में ‘भाषा’ महत्त्वपूर्ण कारक बनकर उभरती है, क्योंकि अंततः यही संवाद का माध्यम भी है। भाषा अभिव्यक्ति का साधन होती है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। हमारी भावनाओं को जब शब्द-देह मिलता है, तो हमारी भावनाएं चिरंजीव बन जाती है। इसलिए भाषा उस शब्द-देह का आधार होती है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र जी का कथन दृष्टव्य है :-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।

हिन्दी भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषा है। यह विश्व की लगभग तीन हजार भाषाओं में अपनी वैज्ञानिक विशिष्टता रखती है। मान्यता है कि हिंदी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत के ‘सिंधु’ शब्द से माना जाता है। सिंधु का तात्पर्य ‘सिंधु’ नदी से है। यही ‘सिंधु’ शब्द ईरान में जाकर ‘हिन्दू’ , ‘हिंदी’ और फिर ‘हिन्द’ हो गया और इस तरह इस भाषा को अपना एक नाम ‘हिन्दी’ मिल गया । हिन्दी के विकास के अनेक चरण रहे हैं और प्रत्येक चरण में इसका स्वरूप विकसित हुआ है। वैदिक संस्कृत, संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश और उसके पश्चात् विकसित उपभाषाओं और बोलियों के समुच्चय से हिन्दी का अद्यतन रूप प्रकट हुआ है, जो अद्भुत है।

पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरो कर रखने वाली हम सब की भाषा ‘हिन्दी’ सम्पूर्ण भारत की जन भाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा है। हिन्दी हमारी शान है, हिन्दी हमारा गौरव है । यह जन-जन की आशा और आकांक्षाओं का मूर्त्त रूप है और हमारी पहचान है । जब भी बात देश की उठती है तो हम सब एक ही बात दोहराते हैं, “हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा“। यह पंक्ति हम हिंदुस्तानियों के लिए अपने आप में एक विशेष महत्व रखती है। हिंदी अपने देश हिंदुस्तान की पहचान है।
हिंदी केवल एक भाषा ही नहीं हमारी मातृभाषा है। यह केवल भावों की अभिव्यक्ति मात्र न होकर हृदय स्थित सम्पूर्ण राष्ट्रभावों की अभिव्यक्ति है। हिंदी हमारे अस्मिता का परिचायक , संवाहक और रक्षक है। सही अर्थो में कहा जाए तो विविधता वाले भारत अपने को हिंदी भाषा के माध्यम से एकता के सूत्र में पिरोये हुए है। भारत विविधताओं का देश है। यहां पर अलग-अलग पंथ, जाति और लिंग के लोग रहते हैं, जिनके खान-पान, रहन-सहन,भेष-भूषा एवं बोली आदि में बहुत अंतर है। लेकिन फिर भी अधिकतर लोगों द्वारा देश में हिन्दी भाषा की बोली जाती है। हिन्दी भाषा हम सभी हिन्दुस्तानियों को एक-दूसरे से जोड़ने का काम करती है। वास्तव में,हिन्दी हमारे देश की राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं समन्वयता का भी प्रतीक है।
हिन्दी की लिपि-देवनागरी की वैज्ञानिकता सर्वमान्य है। लिपि की संरचना अनेक मानक स्तरों से परिष्कृत हुई है। यह उच्चारण पर आधारित है, जो उच्चारण-अवयवों के वैज्ञानिक क्रम- कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ आदि से निःसृत हैं। प्रत्येक ध्वनि का उच्चारण स्थल निर्धारित है और लेखन में विभ्रम की आशंकाओं से विमुक्त है। अनुच्चरित वर्णों का अभाव, द्विध्वनियों का प्रयोग, वर्णों की बनावट में जटिलता आदि कमियों से बहुत दूर है। पिछले कई दशकों से देवनागरी लिपि को आधुनिक ढंग से मानक रूप में स्थिर किया है, जिससे कम्प्यूटर, मोबाइल आदि यंत्रों पर सहज रूप से प्रयुक्त होने लगी है। स्वर-व्यंजन एवं वर्णमाला का वैज्ञानिक स्वरूप के अतिरिक्त केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण भी किया गया, जो इसकी वैश्विक ग्राह्यता के लिए महत्त्वपूर्ण कदम है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की पंक्तियां दृष्टव्य है:-

है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी । हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ।।

हिन्दी में साहित्य-सृजन परम्परा एक हजार वर्ष से भी पूर्व की है। आठवीं शताब्दी से निरन्तर हिन्दी भाषा गतिमान है। पृथ्वीराज रासो, पद्मावत, रामचरितमानस, कामायनी जैसे महाकाव्य अन्य भाषाओं में नहीं हैं। संस्कृत के बाद सर्वाधिक काव्य हिन्दी में ही रचा गया। हिन्दी का विपुल साहित्य भारत के अधिकांश भू-भाग पर अनेक बोलियों में विद्यमान है, लोक-साहित्य व धार्मिक साहित्य की अलग संपदा है और सबसे महत्त्वपूर्ण यह महान् सनातन संस्कृति की संवाहक भाषा है, जिससे दुनिया सदैव चमत्कृत रही है। उन्नीसवीं शती के पश्चात् आधुनिक गद्य विधाओं में रचित साहित्य दुनिया की किसी भी समृद्ध भाषा के समकक्ष माना जा सकता है। साथ ही दिनों-दिन हिन्दी का फलक विस्तारित हो रहा है, जो इसकी महत्ता को प्रमाणित करता है।

पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है, मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी। पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है, साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।।

हिन्दी और विश्व भाषा के प्रतिमानों का यदि परीक्षण करें तो न्यूनाधिक मात्रा में यह भाषा न केवल खरी उतरती है, बल्कि स्वर्णिम भविष्य की संभावनाएँ भी प्रकट करती है। आज हिन्दी का प्रयोग विश्व के सभी महाद्वीपों में प्रयोग हो रहा है। आज भारतीय नागरिक दुनिया के अधिकांश देशों में निवास कर रहे हैं और हिन्दी का व्यापक स्तर पर प्रयोग भी करते हैं, अतः यह माना जा सकता है कि अंग्रेजी के पश्चात् हिन्दी अधिकांश भू-भाग पर बोली अथवा समझी जाने वाली भाषा है।
भारतवर्ष के ललाट की बिन्दी, अर्थात “हिन्दी भाषा” को आज़ के ही दिन 14 सितम्बर 1949 को अनुच्छेद, 343 (1) के तहत संविधान सभा के सामूहिक मत द्वारा राजभाषा के रूप में अपनाया गया है। वर्धा समिति के सिफ़ारिश पर 1953 से प्रतिवर्ष 14 सितम्बर की तिथि को उत्सवपूर्वक “हिन्दी दिवस” के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में हिन्दी को संविधान के द्वारा राजभाषा का पद मिला हुआ है, इस हेतु संवैधानिक प्रावधानों व विभिन्न आयोगों की सिफारिशों को क्रियान्विति का प्रयत्न हुआ है, किन्तु राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी अभी तक समुचित अधिकार प्राप्त नहीं कर पाई है, जो विचारणीय है। उन कारकों का अध्ययन किया जाना चाहिए, जो कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा पद पर अधिष्ठित कर सके। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के गौरव से विभूषित करने हेतु हमें एकजुट होना होगा । आइए, हम हिन्दी के प्रसार के लिए कृतसंकल्प होकर एक स्वर से कहें कि “हिन्दी हमारे माथे की बिन्दी है”। हमें यह प्रण भी लेना होगा कि हम हिन्दी को अपने उस शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित कर दें कि हमें हिन्दी दिवस मनाने जैसे उपक्रम न करने पड़ें और हिन्दी स्वतःस्फूर्त भाव से मूर्द्धाभिषिक्त हो ।

विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई । प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था इसीलिए इस दिन को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। उस समय से हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी को अंतर्राष्टीय स्तर तक आगे बढ़ाकर उसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाना और प्रचार प्रसार करना है।
10 जनवरी को दुनियाभर में विश्व हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है। यह दिन भारतीयों के लिए बेहद खास होता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं। विश्व हिन्दी दिवस का उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना, हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना, हिन्दी के लिए वातावरण निर्मित करना, हिन्दी के प्रति अनुराग पैदा करना, हिन्दी की दशा के लिए जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है।
वर्तमान में हिन्दी को संविधान के द्वारा राजभाषा का पद मिला हुआ है, इस हेतु संवैधानिक प्रावधानों व विभिन्न आयोगों की सिफारिशों को क्रियान्विति का प्रयत्न हुआ है, किन्तु राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी अभी तक समुचित अधिकार प्राप्त नहीं कर पाई है, जो विचारणीय है। उन कारकों का अध्ययन किया जाना चाहिए, जो कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा पद पर अधिष्ठित कर सके। हिन्दी को राष्ट्रभाषा के गौरव से विभूषित करने हेतु हमें एकजुट होना होगा । आइए, हम हिन्दी के प्रसार के लिए कृतसंकल्प होकर एक स्वर से कहें कि “हिन्दी हमारे माथे की बिन्दी है”। हमें यह प्रण भी लेना होगा कि हम हिन्दी को अपने उस शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित कर दें कि हमें हिन्दी-दिवस मनाने जैसे उपक्रम न करने पड़ें और हिन्दी स्वतःस्फूर्त भाव से मूर्द्धाभिषिक्त हो ।

हिन्दी अप्रतिम जीवनी-शक्तिवाली और संघर्षशील भाषा के रूप में उभरती हुई अपना मुक़ाम तय कर रही है । हमें अपनी भाषा से प्रेम और आत्मीयता विकसित करते हुए इसके सही उपयोग के प्रति सचेष्ट रहना चाहिये । यदि हमारी प्रतिबद्धता निरंतर सजग और उत्साही बनी रही तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारी भाषा ‘हिन्दी’ विश्व में सिरमौर होगी ।
इस गौरवमयी ‘हिन्दी दिवस’ (14 सितम्बर) पर समस्त साहित्यसाधक, सुधी मनीषियों, लब्धप्रतिष्ठ-महानुभावों, शिक्षा व साहित्य की शृंखला से जुड़े हर एक व्यक्तित्व को अक्षररूपी पुष्पांजलि से कोटिशः शुभकामनाएं..!!!

अंत में सुप्रसिद्ध कवि गिरिजा प्रसाद माथुर जी की पंक्तियां दृष्टव्य है :-

सागर में मिलती धाराएं
हिन्दी सबकी संगम है,
शब्द,नाद,लिपि से भी आगे
एक भरोसा अनुपम है,
गंगा कावेरी की धारा
साथ मिलाती हिंदी है,
पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी
सेतु बनाती हिन्दी है।

Tek Raj
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