प्रजासत्ता|
ममी का जिक्र करने पर हमारे सामने मिस्र का ही ख्याल आता हैं,लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि भारत के हिमाचल प्रदेश में एक ऐसी ही रहस्यमय ममी मौजूद है| बता दें कि भारत तिब्बत सीमा पर हिमाचल के लाहौल स्पीति के गयू गांव में मिली इस ‘ममी’ का रहस्य आज भी बरकरार है। तभी तो हर साल हजारों लोग इसे देखने के लिए देश विदेश से यहां पहुंचते हैं। लाहौल स्पीति की ऐतिहासिक ताबो मोनेस्ट्री से करीब 50 किमी दूर गयू नाम का यह गांव साल में 6-8 महीने बर्फ से ढके रहने की वजह से दुनिया से कटा रहता है। कहते हैं कि यहां मिली यह ममी तिब्बत से गियु गाँव में आकर तपस्या करने वाले लामा सांगला तेनजिंग की है।
कहा जाता है कि लामा ने साधना में लीन होते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे। तेनजिंग बैठी हुई अवस्था में थे। उस समय उनकी उम्र मात्र 45 साल थी। दुनिया में यह एकमात्र ममी है जो बैठी हुई अवस्था में है।
इस ममी की वैज्ञानिक जाँच में इसकी उम्र 550 वर्ष से अधिक पायी गयी है। ममी बनाने में एक खास किस्म का लेप मृत शरीर पर लगाया जाता है लेकिन इस ममी पर किसी किस्म का लेप नहीं लगाया है फिर भी इतने वर्षों से यह ममी कैसे सुरक्षित है? यह राज अभी भी बरकरार है।
स्थानीय लोगों के अनुसार चौंकाने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि इस ममी के बाल और नाखून आज भी बढ़ते रहते हैं। इसीलिए लोग इसे जिंदा भगवान मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं।
1974 में यहां आए भूकम्प में यह ममी जमीन में दफ़न हो गयी थी। 1995 में आईटीबीपी के जवानों को सड़क बनाते समय खुदाई में यह ममी फिर मिल गई। 2004 में, स्थानीय पुलिस ने कब्र की खुदाई की और ममी को हटा दिया। ममी उल्लेखनीय रूप से अच्छी तरह से संरक्षित है, जिसमें त्वचा बरकरार है और सिर पर बाल हैं। वह बैठे हुए स्थान पर गर्दन और जांघों के चारों ओर रस्सी (कुछ बौद्ध दस्तावेजों में दर्ज एक गूढ़ अभ्यास) के साथ मर गया।
कहते हैं कि खुदाई के समय इस ममी के सिर पर कुदाल लगने से खून तक निकल आया था, जो कि सामान्य तौर पर संभव नहीं है। ममी पर इस ताजा निशान को आज भी देखा जा सकता है। 2009 तक यह ममी ITBP के कैम्पस में रखी हुई थी। देखने वालों की भीड़ देखकर बाद में इस ममी को अपने गाँव में स्थापित कर लिया गया। गयू गांव पहुंचने के लिए आप शिमला और मनाली दोनों जगहों से जा सकते हैं।
पेनसेल्वेनिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता विक्टर मैर के अनुसार गयू में स्थापित ममी लगभग 550 साल पुरानी है। सैंकड़ों वर्ष पहले बौद्ध भिक्षुओं का व्यापार के सिलसिले में भारत और तिब्बत के मध्य आना जाना था। उस समय एक बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग यहां मेडिटेशन की मुद्रा में बैठे और फिर उठे ही नहीं। उस समय ही इनके शरीर को एक स्तूप में संभाल कर रख लिया गया था।