प्रजासत्ता नेशनल डेस्क|
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल प्रवेश के लिए नीट काउंसलिंग में ऑल इंडिया कोटा सीटों में ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) को 27 प्रतिशत कोटा प्रदान करने की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च स्कोर योग्यता के लिए एकमात्र मानदंड नहीं है, पिछड़ेपन को दूर करने में आरक्षण की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर तबके (EWS) के लिए आरक्षण के साथ नीट-पीजी काउंसलिग में 27% आरक्षण को सही सही ठहराया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मेरिट के साथ आरक्षण भी दिया जा सकता है, यह विरोधाभासी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उच्च अंक योग्यता के लिए एकमात्र मानदंड नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने 7 जनवरी के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें 2021-22 के लिए NEET स्नातक और स्नातकोत्तर प्रवेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण की अनुमति दी गई थी। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, “योग्यता को सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए। पिछड़ेपन को दूर करने में आरक्षण की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आरक्षण योग्यता के विपरीत नहीं है, लेकिन सामाजिक न्याय के वितरणात्मक परिणामों को आगे बढ़ाता है।
अदालत ने यह भी कहा कि एनईईटी-पीजी में प्रवेश के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) मानदंड पर कोई रोक नहीं होगी और मौजूदा मानदंड (8 लाख रुपये सकल वार्षिक आय कट-ऑफ) वर्तमान प्रवेश वर्ष पर लागू होंगे।
इसने कहा, ”इस स्तर पर न्यायिक हस्तक्षेप से इस वर्ष के लिए प्रवेश में देरी होती। इसलिए 2021-22 बैच के लिए आरक्षण मानदंड पर कोई रोक नहीं है। हम अभी भी एक महामारी के बीच में हैं। डॉक्टरों की भर्ती में देरी से महामारी की प्रतिक्रिया प्रभावित होगी।”
पीठ ने कहा कि आरक्षण के लिए जिस सामग्री पर भरोसा किया गया है, और “गरीब व सबसे गरीब” की पहचान के संबंध में सभी पक्षों को सुने बिना नीति की योग्यता के आधार पर आदेश पारित करना संभव नहीं होगा।
अनुच्छेद 15(4) और 15(5) का हवाला देते हुए, जो वास्तविक समानता का आह्वान करते हैं, शीर्ष अदालत ने कहा, “प्रतियोगिता परीक्षा उत्कृष्टता, व्यक्तियों की क्षमताओं को नहीं दर्शाती है। वे कुछ वर्गों को मिलने वाले सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ को नहीं दर्शाते हैं।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि परीक्षा आयोजित होने तक आरक्षण और सीटों की संख्या का खुलासा नहीं किया जाता है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सीटों के गोलपोस्ट को बदल दिया गया है।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वैधता और पात्रता की स्थिति के मुद्दे पर शीर्ष अदालत मार्च के तीसरे सप्ताह में सुनवाई करेगी।
7 जनवरी को जारी एक अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2021-22 के लिए NEET-PG प्रवेश के लिए मेडिकल काउंसलिंग फिर से शुरू करने की अनुमति दी। इसने 27 प्रतिशत ओबीसी और 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा की वैधता को भी बरकरार रखा।
यह आदेश राज्य सरकार के चिकित्सा संस्थानों में अखिल भारतीय कोटा (एआईक्यू) सीटों पर केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका से संबंधित है।
पीठ ने आज अपने विस्तृत फैसले में कहा कि एआईक्यू की योजना सरकारी चिकित्सा संस्थानों में सीटें आवंटित करने के लिए बनाई गई थी।
आदेश में कहा गया, “एआईक्यू सीटों में आरक्षण देने से पहले केंद्र को इस अदालत की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी और इस प्रकार उनका निर्णय सही था। हम मानते हैं कि स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए एआईक्यू में ओबीसी के लिए आरक्षण संवैधानिक रूप से मान्य है।
बता दें कि इससे पहले 7 जनवरी को अपने अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने नीट-पीजी और यूजी ऑल इंडिया कोटा काउंसलिंग शुरू करने की अनुमति दे दी थी। इसके साथ ही आज परीक्षा में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण देने की वैधता को भी बरकरार रखा है। कोर्ट के फैसले के बाद अब शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में दाखिले की राह आसान हो गई है।
कोर्ट के इस फैसले से आंदोलन करने वाले डॉक्टरों के साथ-साथ अस्पताल में इलाज कराने वाले मरीजों को भी राहत मिली होगी। अब अधिक से अधिक डॉक्टर काम पर वापस लौटेंगे। पिछली सुनवाई में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एस बोपन्ना की बेंच ने नीट मामले पर फैसला सुरक्षित रखते हुए टिप्पणी की ती कि बेंच राष्ट्र हित में काउंसलिंग को इजाजत देना चाहती है। अब सुप्रीम कोर्ट ईडब्ल्यूएस कोटे की वैधता पर मार्च, 2022 के तीसरे हफ्ते में विस्तृत सुनवाई करेगी।